यह एक ऐसा अकस्मात उत्पन होने वाला सवाल है । जो कभी कभी आपके मन में जरूर आता होगा । अगर हम आत्म मंथन करें तो इसका सिर्फ एक ही जवाब है वह है निरंतरता है। हां ये वही निरंतरता है जिसके अभाव में अच्छे अच्छे प्रतियोगी अपना लक्ष्य खो देते है । हां ये सच है अगर हम सच्ची आशा के साथ निरंतर चलते रहे तो मंजिल अवश्य मिलती है। लेकिन धैर्य का अर्थ स्थिरता तो कतई नहीं हो सकता । धैर्य हमेशा सकारात्मक प्रहाव के साथ हीं आता है । अगर हम थोड़े भी नकारात्मक हो रहे हैं तो निश्चित रूप से धैर्य का साथ छूट रहा है। 
अगर हम अपने धैर्य की परीक्षा लेना चाहते हैं तो हमें लंबे समय और संघर्ष को साथ में रखते हुए, निरंतर असफल(आवश्यक नहीं) सीढियां चढ़ने के लिए तत्पर रहना होगा और विकट परिस्थितियों में भी आत्मविश्वास के साथ बिना विचलित हुए आगे बढ़ने का अटूट साहस दिखाना होगा । इसके लिए मैं आपको एक कहानी सुनाना चाहूंगा आपने शायद पहले सुनी भी दो लकड़हारा था दोनों को एक ही पेड़ के साइज के दो शाखा दिए गए । जिसे उसे सबसे पहले काटना था, एक ने जल्दबाजी में कुल्हाड़ी चलानी शुरू कर दी, जबकि दूसरे ने पहले 30 min में कुल्हाड़ी को धार करने में गुजारी और कुल्हाड़ी मजबूत किया फिर जल्दी जल्दी लकड़ी काटता गया । इतने में पहले लकड़हड़ा का कुल्हाड़ी बेंत टूट जाता है और वह रेस से बाहर हो जाता है ।
हमारे साथ भी कुछ ऐसा ही होता है, अगर हम पहले से तैयार हो तब तो ठीक है वरना परीक्षा के नजदीक आते हीं तैयारी शुरू करने से हम निश्चित रूप से बाहर हो सकते हैं ।

धैर्य और निरंतरता दोनों एक दूसरे के पूरक साथी है ।