बदले मौसम की साख से इतिहास बनाता फिर,
दिन ढलने से पूर्व ही नित नव राह अपनाता फिर।
याद रख राही तू, एक दिन वो मंजर भी होंगे,
जब दुश्मन भी अपने होंगे, और अपने ही दुश्मन होंगे।
ज़िंदगी की बैसाखी से गंतव्य राह के सपने होंगे,
राह जोड़ कर, दूरी बटोर कर संघर्ष सिद्ध अपने ही होंगे।
कुछ मिले राहगीर को, साथ-संगी बनाता फिर,
नव-दिवस के सूर्य भोर पहर, खुद जगमगाता फिर।
जब टूटेगा कोई ख्वाब तेरा, फिर खुद ही उसको जोड़ पाएगा,
अंधेरों की गिरफ़्त से निकल, नया सूरज खुद लाएगा।
थकान जब पांवों को रोकेगी, हिम्मत ही तेरी सहारा होगी,
तू बढ़ता जाएगा आगे, और जीत तेरे ही लिए दोबारा होगी।
जीवन के इस पथ पर, हार-जीत तो बस बहाने हैं,
चल पड़े जो राही साहस से, वही सच में दीवाने हैं।
एक दिन तू भी देखेगा, कैसे पलटते हैं ज़माने,
जो कहते थे “तू न कर पाएगा”, वही देंगे तुझे पहचानें।
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